05 जून, 2005

saral


काँटे अनियारे लिखता हूँ
अपने गीतों से गंध बिखेरूँ मैं कैसे
मैं फूल नहीं काँटे अनियारे लिखता हूँ।
मैं लिखता हूँ मँझधार, भँवर, तूफान प्रबल
मैं नहीं कभी निश्चेष्ट किनारे लिखता हूँ।
मैं लिखता उनकी बात, रहे जो औघड़ ही
जो जीवन–पथ पर लीक छोड़कर चले सदा,
जो हाथ जोड़कर, झुककर डरकर नहीं चले
जो चले, शत्रु के दाँत तोड़कर चले सदा।
मैं गायक हूँ उन गर्म लहू वालों का ही
जो भड़क उठें, ऍसे अंगारे लिखता हूँ।
मैं फूल नहीं काँटे अनियारे लिखता हूँ।।
हाँ वे थे जिनके मेरु–दण्ड लोहे के थे
जो नहीं लचकते, नहीं कभी बल खाते थे,
उनकी आँखों में स्वप्न प्यार के पले नहीं
जब भी आते, बलिदानी सपने आते थे।
मैं लिखता उनकी शौर्य–कथाएँ लिखता हूँ
उनके तेवर के तेज दुधारे लिखता हूँ।
मैं फूल नहीं काँटे अनियारे लिखता हूँ।।
जो देश–धरा के लिए बहे, वह शोणित है
अन्यथा रगों में बहने वाला पानी है,
इतिहास पढ़े या लिखे, जवानी वह कैसे
इतिहास स्वयं बन जाए, वही जवानी है।
मैं बात न लिखता पानी के फव्वारों की
जब लिखता, शोणित के फव्वारे लिखता हूँ।
मैं फूल नहीं काँटे अनियारे लिखता हूँ।
॥श्रीकृष्ण सरल॥


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सरल चेतना एक ऍसे व्यक्तित्व पर केन्द्रित है जो भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में अपनी कलम को तलवार बनाकर युद्ध में जूझता रहा। जिसने ११३ पुस्तकों का सृजन किया। जिसने अपनी पुस्तकें स्वयं के खर्चे पर प्रकाशित कराने के लिए अपनी ज़मीन ज़ायदाद बेच दी। जिसने अपनी पुस्तकें पूरे देश भर में घूम–घूम कर लोगों तक पहुँचायीं और अपनी पुस्तकों की ५ लाख प्रतियाँ बेच लीं। लेकिन अपने लिए कुछ नहीं रखा। जो धनराशि मिली वह शहीदों के परिवारों के लिए चुपचाप समर्पित करता रहा। महाकवि होने के बाद भी जिसकी यह आकांक्षा रही कि उसे कवि या महाकवि नहीं बल्कि 'शहीदों का चारण' के नाम से पहचाना जाये।
ऍसा व्यक्तित्व प्रचार का भूखा नहीं होता और न उसका प्रचार हुआ। व्यक्तिगत स्तर पर भी नहीं और शासन स्तर पर भी नहीं। लेकिन सरल चेतना पत्रिका के माध्यम से और अब जालघर के सहयोग से हमारा यह प्रयास है कि महान व्यक्तित्व के धनी, क्रान्तिकारियों के गुणगान करने और देशसेवा का व्रत लेने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी महाकवि श्रीकृष्ण सरल को भारत में रहने वालों के अतिरिक्त प्रवासी भारतीय भी जान सकें और उनकी कालजयी देशभक्तिपूर्ण कविताओं को पढ़ सकें। यही हमारा विनम्र प्रयास है। आपको हमारा यह प्रयास कैसा लगा? यदि अपनी प्रतिक्रिया देंगे तो हमें लगेगा कि हमारा परिश्रम सफल रहा है।
सरल जी के शब्दों में—
क्रान्ति के जो देवता, मेरे लिए आराध्य।
काव्य साधन मात्र, उनकी वन्दना है साध्य।।
आइए प्रवेश करें सरल चेतना जालघर में–

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